Saturday, May 19, 2012

गीत -०५ आन्शुओं का महल .... अनिल अयान

गीत -०५ आन्शुओं का महल .... अनिल अयान

आन्शुओं ने गढ़ा ज़िन्दगी का महल
लाख कोशिश करूँ टूटता ही नहीं .
वख्त ने जो छुड़ाया है दामन तेरा
संग चाह कर तेरा छूटता ही नहीं

तुम हो जीवन की अप्रतिम साधना
जिससे जुडती रही मेरी ये भावना
यादों ने दी जो दस्तक मेरे द्वार पे
उन पलों को ये दिल भूलता ही नहीं


तेरे आने से आई थी खुशियाँ भली
सूखने अब लगी है कलि दर कलि
दिल की गहराई में समुन्दर यहाँ
दुःख की आह्टो से सूखता ही नहीं 


उसका चेहरा छिपा  मेरे दिल में अब
मेरी चाहत का है वाही एक सबब
दिल की तन्हाइयों से तुम जो मिली
तुमसे मिल कर कभी रूठता ही नहीं

4 comments:

  1. बहुत अच्छी गज़ल लिखी है...सुन्दर..।

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  2. दा पर ये तो गीत है.... पर आपके साधोवाद क लिए शुक्रिया :)

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  4. बहुत सुन्दर भाव......

    अनु

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