Sunday, February 16, 2014

सुकूँ है कहाँ मुझको बता दीजिये.

सुकूँ है कहाँ मुझको बता दीजिये.

हर तरफ नफरतों का घनघोर तम
सूर्य बनकर इसको हटा दीजिये
रोशनी दीजिये और ऊष्णता दीजिये
द्वेष की खाइयों को पटा दीजिये

दर्द है जिंदगी में यहाँ आजकल
सब करने लगे देख करके नकल
जब फुरसत मिली सब बुराई किये
दिलों में जलाते स्वार्थ के सब दिये
अवसर के तवों में राग सिकने लगा
बाजार में हुनर भी आज बिकने लगा
उलझनों में यहाँ वक्त कट रहा है
सुकूँ है कहाँ मुझको बता दीजिये.

उमर बढती रही सोच घटती रही
स्नेह की धार अश्रु बन कर बही
दाव चलते रहे शतरंज की जमीं
मूर्त सत्य है यहाँ खुशी और गमी
लोकतंत्र की कहानी लिखी जा रही
विवादों के संग समाज में आ रही
होनहार पूँछ बैठे यदि कभी आप से
मँजिलों का उसको पता दीजिये.
अनिल अयान श्रीवास्तव,सतना
९६४०६७८१०४०

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