Tuesday, May 23, 2017

मै निरुत्तर रहा।

मै निरुत्तर रहा। 
मै कुछ ना कहा। 

चाहे हो खुशी या
या गहरा सा गम
चाहे हो तपन या।
चाहे घनघोर तम
लहरों के विपरीत 
मै हरदम ही बहा। 

जो ये थी रुसवाई 
बसती गई गहराई 
दिल की पीर अब
दिखती रही पराई।
गमों संग कस्ती पे
तूफां के तेवर सहा।

भीड थी रिश्तों में। 
जो मिले किस्तों में। 
वो यादें पिरोते हुई। 
कैद हुई बस्तों मे। 
थामने को सब थे। 
मै अकेला ढ़हा। 

जिंदगी ढलती रही। 
धडकन जलती रही। 
उम्र हुई बौनी छौनी। 
मौत मन पलती रही। 
कोई पल "आह" का। 
और कोई कहे "अहा"। 
अनिल अयान 

मै अपने दिल की रामकहानी लिखता हूं।

मै अपने दिल की रामकहानी लिखता हूं। 
अपनी पलकों से बहता पानी लिखता हूं। 

कविता मेरे अंतर्मन की परिभाषा है। 
कविता मेरे सपनों की अभिलाषा है। 
कविता मेरे संबल का आरोहण है। 
इसमे मेरी पराजय का आंदोलन है। 

शब्द - शब्द संबंधों की व्यथा कथा। 
तिल तिल खपती पीर पुरानी लिखता हूं। 

सपनों को हर धड़कन से पोसा मैने। 
न मिली पराजय को कभी कोसा मैने। 
जो सपने टूटे तो अश्क़ बहे नहीं मेरे। 
जो अपने रूठे तो लब कहे नहीं मेरे।  

नये नवेले रूप दिखाती जो मुझको
बचपन के संग खाक जवानी लिखता हूँ। 
अनिल अयान