Sunday, March 2, 2014

GEET

जिस दिन तुम्हे ये मंजिलें मिल जायेगीं
उस दिन तुम्हे मै भी कहीं याद आऊँगा.
यादों के संग कुछ काफिले बन जायेंगें.
फिर से खुशी के गीत मै भी गाऊँगा.

जब भी खतरों में लगे ये जिंदगी.
और उज्जवल कल ना दे बंदगी.
मंजिलों से जब भी तुम हटने लगो.
और भोरमभोर जब तुम ना जगो.
जब भी अंधेरों से डर लगने लगे
और डर तुमको रंग रगने लगे
उस हार के पहले तुम याद करना
तुम्हारे संग मै मंजिलों तक जाऊँगा.
जिस दिन तुम्हे ये मंजिलें मिल जायेगीं
उस दिन तुम्हे मै भी कहीं याद आऊँगा.१.


हौसले जब भी तुम्हारा साथ छोडे
और साथी सब तुम्हारा हाथ छॊडे
यदि मंजिलों की राह में पडना अकेले
अनवरत तब तुमको है बढना अकेले.
मंजिलें पाने की खातिर बढना पडेगा.
संघर्ष करके यह समर लडना पडेगा.
तुम्हारे चेहरे मे दिखे जब मुझको खुशी.
तुम्हारे संग मै विजय ध्वज लहराऊँगा.
जिस दिन तुम्हे ये मंजिलें मिल जायेगीं
उस दिन तुम्हे मै भी कहीं याद आऊँगा.२.
 अनिल अयान.

Sunday, February 16, 2014

गीत-२. -निर्वासित-

गीत-२. -निर्वासित-
उमर भर का स्वप्न था जो
आज निर्वासित हो गया था
जीवन का संत्रास बनकर के
अपनी पलकें भिगो गया था.

सपनों का माकान खडाकर
जीवन यापन करते थे
और राजनैतिक हथकंडो से
नेता शासन करते थे
शासन और प्रशासन सबका
अपना अपना काम था
वहाँ बना बाजार बडा था
सबका अपना दाम था.
बस्ती वालों का कुछ पल में
जीवन ही सारा खो गया था.

संगीनों और सिपेहसलारों से
बस्ती की जनता काँप गई.
नियम कानूनों के चलते वो
आगामी खतरों को भाँप गई.
उमर भर की कमाई से यारो
सबने अपना घर बनवाया
और प्रशासन की सह पर
आशियाना एक तनवाया.
ठिठुरता बचपन और बुढापा
खुले आसमाँ में सो गया था.

उजडे परिवार सडक पर थे
खुला आसमाँ ही छत था.
मानवीय आपदा से पीडित
किसी मासूम का खत था.
आवासित से निर्वासित होकर
उमर भर का दंश मिला था
ना ही कोई मदद मिली थी
ना मानवीयता का अंश मिला
महिला पुरुष और बूढे बच्चे
हर दिल इससे रो गया था.
अनिल अयान श्रीवास्तव,सतना.

सुकूँ है कहाँ मुझको बता दीजिये.

सुकूँ है कहाँ मुझको बता दीजिये.

हर तरफ नफरतों का घनघोर तम
सूर्य बनकर इसको हटा दीजिये
रोशनी दीजिये और ऊष्णता दीजिये
द्वेष की खाइयों को पटा दीजिये

दर्द है जिंदगी में यहाँ आजकल
सब करने लगे देख करके नकल
जब फुरसत मिली सब बुराई किये
दिलों में जलाते स्वार्थ के सब दिये
अवसर के तवों में राग सिकने लगा
बाजार में हुनर भी आज बिकने लगा
उलझनों में यहाँ वक्त कट रहा है
सुकूँ है कहाँ मुझको बता दीजिये.

उमर बढती रही सोच घटती रही
स्नेह की धार अश्रु बन कर बही
दाव चलते रहे शतरंज की जमीं
मूर्त सत्य है यहाँ खुशी और गमी
लोकतंत्र की कहानी लिखी जा रही
विवादों के संग समाज में आ रही
होनहार पूँछ बैठे यदि कभी आप से
मँजिलों का उसको पता दीजिये.
अनिल अयान श्रीवास्तव,सतना
९६४०६७८१०४०

Tuesday, January 14, 2014

कांग्रेस के कायदे में फँसे आप के वायदे


कांग्रेस के कायदे में फँसे आप के वायदे
आप का दिल्ली में सरकार बनाना और कांग्रेस का पर्दाफास्ट करना सबसे बडी घटना है. जिसके चलते यह कहा जा सकता है कि राजनीति का नया इतिहास दिल्ली की धरती में रचा गया. केजरीवाल अब जब मुख्यमंत्री की सपथ ले चुके है इस दर्मियान जरूरी हो गया है कि यह चर्चा की जाये कि आने वाले समय में दिल्ली की सरकार और विधान सभा का क्या हाल होगा.समय सापेक्ष आज की सत्ता में केजरीवाल किसी अभिमन्यु से कम नहीं है. वो  अभिमन्यु जिसने राजनीति रूपी चक्रव्यूह में प्रवेश करने की शिक्षा तो अन्ना से लेकर सरकार बना लिया परन्तु इससे निकलने का रास्ता खोजने में अभी बहुत वक्त लग जायेगा.क्योंकी एक इंजीनियर के रूप में जीवन जीना और फिर सत्ता के गलियारे में बंजारापन करना बहुत कठिन है.अरविंद केजरीवाल ऐसे मुख्यमंत्री है जिन्होंने आम आदमी को यह एहसास कराया की जनसाधारण चाहे तो सत्ता तक पहुँच सकता है.परन्तु यह भी दुर्भाग्य रहा होगा कि सत्ता के लिये विरोधी भाषण देने का विषय बन चुकी कांग्रेस से ही समझौता करना पडा केजरीवाल को.सत्ता का असली नंगापन तो उसी दिन समझ में आगया होगा जब आप के कई मंत्री स्टिंग आपरेशन में फंस गये.और कांग्रेस के वे विधायक जो आप को समर्थन कर रहे थे वो भी थोथे चने बाजे घने वाले राग अलापने लगे.अब तक मै यह जानने में असमर्थ हूँ कि जनता अंध विश्वास जीत कर सत्ता में आयी आप जनता के अरमानों के साथ खेल कर कांग्रेस से ही हाथ मिलाकर सत्ता सुख क्यों भोग रही है. और क्या वह इस काजल की कोठरी से खुद को बिना डीठ लगे बाहर निकाल पायेगी. वायदों की बात करें तो कांग्रेस का पहले विना शर्त समर्थन और फिर आप के वायदों को समर्थन देना कैसा गुणा भाग है. राजनीति का एकाकी करण तभी देखने को मिल गया था जब भाजपा के द्वारा आप का चुनाव के समय समर्थन करना और फिर आप के द्वारा कांग्रेस का दामन थामने के बाद विरोध करना किस पाले का खेल है.
            बिजली पानी और अन्य सुविधाओं का मामला कितना और कब तक पालन करेगी आप यह तो समय के गर्त में छिपा हुआ है परन्तु केजरीवाल के विचार और उनका दिल्ली के प्रति जुझारूपन वाकये काबिले तारीफ है. परन्तु उनके साथी जिस तृष्णा के वशीभूत होकर आप को ज्वाइन किया था वह तृष्णा अब और बढ गई है इसी का परिणाम था कि गिन्नी जैसे लोग भी मंत्री पद को पाने के लिये लालायित हो गये. सब को पता है कि मंत्री जैसे पद भी आय व्यय का तिलिस्म ही तो होता है जिसमें जाने के बाद सब कई पुस्तों तक करोडपति से ज्यादा रकम हासिल कर लेते है. तो गिन्नी जैसे राजनीतिज्ञ कैसे पीछे हट सकते थे.भले ही आप के सिद्धांतों की मैयत निकल जाये. केजरीवाल का कार्यकाल कब तक चलता है यह कोई नहीं जानता है परन्तु जब तक चलेगा वह अविश्मरणीय रहेगा.क्योंकि इस कार्यकाल में बहुत से ऐसे निर्णय होगें जिसके प्रभाव से अन्य राज्यों के सत्ताधारियों के आँखें भी खुलेंगी. रही बात कांग्रेस की तो वह अपना समर्थन कितने समय तक देती है और किन शर्तों तक देती है इस बात को अरविंद केजरीवाल को अपने डेंजर जोन की सीमा रेखा के रूप में लेना चाहिये.क्योंकि इसके बाद ही अन्य रास्तों पर विचार करना आवश्यक होगा केजरीवाल के लिये.कांग्रेस का उद्देश्य क्या है समर्थन देने का वह तो वक्त दर वक्त जनता और अरविंद केजरीवाल दोनो को समझ में आ जायेगा.यह डगर  पनघट की बहुत कठिन है केजरीवाल के लिये.कौरवों के बीच में फंसे अभिमन्यु की कहानी बयान कर रहे केजरीवाल दिल्ली की संसद में परन्तु आज के समय में अभिमन्यु भी हाईटेक हो गये है नई तकनीकी से लैस है और इंजीनियर भी इस लिये कांग्रेस के कायदों के खिलाफ भी शायद उपाय निकाल लें और पाँच वर्ष पूरे कर लेगें.
            आने वाला समय ही यह बतायेगा कि हाथ झाडू लगायेगा या झाडू हाथ का सफाया कर देगा.जितना भी काम केजरीवाल करेंगे वह सब उनकी इस सत्ता की यात्रा के प्रति प्रगति पथ बतलायेगा.इस घटना के संदर्भ में एक बात तो स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि सत्ता के लोगों का भीड में रहकर विरोध करना जितना सरल है उतना ही कठिन है सत्ता का हिस्सा बनकर विरोध जताना और समस्याओं का निराकरण करना.आप के नियम कायदे और वायदे सर्व जन हिताय तभी हो सकेगें  जब उसे उसी तरीके से उपयोग किये जायेगेम वरना यह भी सत्ता के खेल में चली एक चाल बनकर रह जायेंगें,.
अनिल अयान.



संवाद


संवाद
संवादों के ना होने से
            गलतफैमियाँ घर करती है.
माना संवादों का वैभव है
            जीवन का हर रिस्ता नाता
जो इनको समझे यहाँ पर
            वो रिस्तों को निभा पाता
रिस्तों को बाँध लिया जो
            वो सफल व्यक्ति कहलाता है
संवादो की भाव भंगिमा
            दुविधायें मन की हरती है.....
जीवन यापन करना यारो
            कहाँ सरल होता जीवन में
 जीवन है संग्राम यथावत
            ना समझे खोता जीवन में
संवादहीनता का प्रभाव
            रिस्तों में  दूरी को गढता है
संवादों से जो खुश रहता
            मँजिल की सीढी चढता है
संवादों से गतिशील ये नभ है
            संवादों से चलती धरती है..
अनिल अयान श्रीवास्तव,सतना.
९४०६७८१०४०