गीत -०३
बेरंग हो गए आज बेचारे. अनिल अयान
रंग बिछे थे इसी शहर में
बेरंग हो गए आज बेचारे.
कीमत नहीं समझता कोई
ये फिरने लगे है मारेमारे
कहाँ गयी गाँवों की गलिया
जिसमे कभी रंग उड़ते थे.
कहा गया वो अल्हड़पन
जिसमे हम हुर्दंग करते थे .
नजाने क्यों शांत हो गए
आस पास के बचपन सारे.
जो कुटिया में सहमा बैठा
रंगों को क्या अपनाएगा
भूखा है जो चार दिनों से
वो कैसे फाग सुनाएगा
चलो चले अब उनके घर में
जहाँ दुखों ने पैर पसारे
बिछड़ गए बचपन के दोस्त
अब हम कैसे खेले होली
दूर हो गए देवर भाभी
सपनों में खोजे हमजोली
आज मिलन ये कहता यारो
आ खुशियों की रंग लगा रे
बेरंग हो गए आज बेचारे. अनिल अयान
रंग बिछे थे इसी शहर में
बेरंग हो गए आज बेचारे.
कीमत नहीं समझता कोई
ये फिरने लगे है मारेमारे
कहाँ गयी गाँवों की गलिया
जिसमे कभी रंग उड़ते थे.
कहा गया वो अल्हड़पन
जिसमे हम हुर्दंग करते थे .
नजाने क्यों शांत हो गए
आस पास के बचपन सारे.
जो कुटिया में सहमा बैठा
रंगों को क्या अपनाएगा
भूखा है जो चार दिनों से
वो कैसे फाग सुनाएगा
चलो चले अब उनके घर में
जहाँ दुखों ने पैर पसारे
बिछड़ गए बचपन के दोस्त
अब हम कैसे खेले होली
दूर हो गए देवर भाभी
सपनों में खोजे हमजोली
आज मिलन ये कहता यारो
आ खुशियों की रंग लगा रे
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