जब हर तरफ फैला हो घन घोर तम।
दीप हम प्रेम का डेहरी मन धरे।
कुछ पहर फिर यहाॅ पर प्रकाशित करे।
चेहरो में फिर हम खुशियों को भरे।
आदतों में छिपा एक अंधकार है।
द्वेष भाव से जल रहा संसार है।
एक नई रोशनी को बुलाएॅ जरा।
ताकि जिंदा रहकर के हम ना मरें।
धरा बंट रही है गगन बंट रहा।
वक्त भी हमारे साथ में घट रहा।
कब तलक भोर का हम करें इंतजार।
आइये ढाई आखर प्रेम का हम पढें।
दीप के रास्ते एक पथ बन रहा।
अधिक कीमती अब नहीं धन रहा।
आवरण को हटाएॅ आचरण से जरा।
एक कदम तुम बढो एक कदम हम बढें।
मना की अंधेरा है फैला बहुत
इसका चरित्रा हुआ मैला बहुत
पर हौसले हमारे नहीं कम हुए
इससे तुम भी लड़ो और हम भी लड़े।
-अनिल अयान, सतना
Like · · Share
दीप हम प्रेम का डेहरी मन धरे।
कुछ पहर फिर यहाॅ पर प्रकाशित करे।
चेहरो में फिर हम खुशियों को भरे।
आदतों में छिपा एक अंधकार है।
द्वेष भाव से जल रहा संसार है।
एक नई रोशनी को बुलाएॅ जरा।
ताकि जिंदा रहकर के हम ना मरें।
धरा बंट रही है गगन बंट रहा।
वक्त भी हमारे साथ में घट रहा।
कब तलक भोर का हम करें इंतजार।
आइये ढाई आखर प्रेम का हम पढें।
दीप के रास्ते एक पथ बन रहा।
अधिक कीमती अब नहीं धन रहा।
आवरण को हटाएॅ आचरण से जरा।
एक कदम तुम बढो एक कदम हम बढें।
मना की अंधेरा है फैला बहुत
इसका चरित्रा हुआ मैला बहुत
पर हौसले हमारे नहीं कम हुए
इससे तुम भी लड़ो और हम भी लड़े।
-अनिल अयान, सतना
Like · · Share
No comments:
Post a Comment