Monday, October 26, 2015

मै लेखक हूं इस आजाद गगन का.

मै लेखक हूं इस आजाद गगन का.
कभी रह न पाया वैचारिक बंधन में.

नियम कायदे बेमानी से लगते है.
अवसर मिलने पर क्यों जगते हैं.
मेरी कलम न अनुशासन में रह पायी.
गलत बात को वह ना सच कह पायी.
समझ के परे लगी मुझको वो बातें.
ऐसे लोगों से बेहतर मै रहूं निर्जन में.

मेरी खुद की सोच से मेरा लेखन है.
गुरूओं का दिया ग्यान ही दर्पण है.
समाज ने जैसा रंग दिखाया है मुझको.
परिस्थियों ने खूब जगाया है मुझको.
लेखन से नेपथ्य का सच बताने को.
मै ठान चुका हूं उद्देश्य यही अंतर्मन में. .

लेखन कोई चारण नही है सत्ता का.
यह कोई उच्चारण नहीं है भत्ता का.
लेखन ही क्या जो मानदेय से बिक जाये.
दोदूना दस अपने लालच मे लिख जाये.
मेरे लिखने से कोई हंगामा हो ना हो
कुछ चिंतन पैदा हो जाये जन जन में...

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