Wednesday, March 15, 2017

मै निरुत्तर रहा।

मै निरुत्तर रहा। 
मै कुछ ना कहा। 

चाहे हो खुशी या
या गहरा सा गम
चाहे हो तपन या।
चाहे घनघोर तम
लहरों के विपरीत 
मै हरदम ही बहा। 

जो ये थी रुसवाई 
बसती गई गहराई 
दिल की पीर अब
दिखती रही पराई।
गमों संग कस्ती पे
तूफां के तेवर सहा।

भीड थी रिश्तों में। 
जो मिले किस्तों में। 
वो यादें पिरोते हुई। 
कैद हुई बस्तों मे। 
थामने को सब थे। 
मै अकेला ढ़हा। 

जिंदगी ढलती रही। 
धडकन जलती रही। 
उम्र हुई बौनी छौनी। 
मौत मन पलती रही। 
कोई पल "आह" का। 
और कोई कहे "अहा"। 
अनिल अयान 

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