कमजोरों को सुनता कौन।
मीठे सपनों को बुनता कौन।
मीठे सपनों को बुनता कौन।
बलिहारी है पीर पराई।
जमते आंसू गहरी खाई।
अपने मे सभी है लीन।
खारा पानी प्यासी मीन।
दर्द छिपाये बैठे हैं सब
खुशी के मोती चुनता कौन।
जमते आंसू गहरी खाई।
अपने मे सभी है लीन।
खारा पानी प्यासी मीन।
दर्द छिपाये बैठे हैं सब
खुशी के मोती चुनता कौन।
साढे साती लगे हुए हैं।
कितने घाव दगे हुए हैं।
रोज कमाना रोज खाना।
वर्ना भरना है हर्जाना।
जीवन की इस लीला में
अक्षरशः अब गुनता कौन।
कितने घाव दगे हुए हैं।
रोज कमाना रोज खाना।
वर्ना भरना है हर्जाना।
जीवन की इस लीला में
अक्षरशः अब गुनता कौन।
सूरज के उगने से लेकर।
चंदा को एक सत्ता देकर।
रोटी कपडा और घरौंदा।
सोता वह मुख को औंधा।
किस्मत को रोज कोसता।
अपने सीने को धुनता कौन।
चंदा को एक सत्ता देकर।
रोटी कपडा और घरौंदा।
सोता वह मुख को औंधा।
किस्मत को रोज कोसता।
अपने सीने को धुनता कौन।