चुनावी दोहे
बदले बदले रंग
है और बदला बदला भाव
देखो किसका जीतेगा
लगा हुआ हर दाँव.
वोट पार्टी है
जाति गत सब वोटों का खेल
कहीं वादों की
है कतार कहीं नोटों की रेल.
स्वेत लबादों मे
लदी व्यक्तित्वों की पतलून
नेता बन गये है
जिनके भोजन नहीं दो जून.
हर पल ही फैला
यहाँ राजनीति का रोग
बिके करोडो रुपयों
में दो कौडी के लोग.
जब जनता ने किया
मजबूरी में विश्वास
चिता जैसे जला
दिये विश्वासों की लाश.
अनिल अयान श्रीवास्तव,सतना
९४०६७८१०७०
No comments:
Post a Comment