Saturday, November 2, 2013

2 नवगीत



विचारों की तुलसी को
        घेर रही नागफनी.
आजकल घरों में फैली
        कलुषित आगजनी.
पाश्चात सभ्यता बोनसाई
        बन बैठी बेड रूम.
डिस्को डांस की अमरबेल
        मचा रही खूब धूम.
राक्षस आज बेटियों के
        सिर्फ वक्ष रहा चूम.
इंशानियत की बगिया
        खून के कतरों से सनी.
हमलों ने धरती को
        एक द्रौपदी बना दिया.
नेकी की फितरत ने
        आज बदी बना दिया.
एक पल की असफलतायें
        कैसे सदी बना दिया.
गरीबी की डायन से
        इंशानों की कब बनी.

 ---------------------------------------
नवगीत
समझौतों की फसलों ने
        मनभूमि को बंजर बना दिया.
खुशियों की चिरैया
        मेरे हॄदय का वन भूल गयी.
हिन्दी जैसी बडी बहन
        आज उर्दू बहन भूल गयी.
सिकस्त फिर ऐसी मिली
        कलम को अपने जीवन में.
मन भावों की सिलवटें
        कथ्य     और कहन भूल गयी.
आदरणीय भावों मे लिपटे
        साहित्य को खंजर बना दिया.
साहित्य के पकवान भी
        देखो कैसे फीके पडे हुये.
थोडी सी साधना करके
        है ये सब पंडे बडे हुये.
जलमग्न द्वीप में देखो
        मोतियों की सीप में देखो.
धोती अपंग व्यथा की पहने
        आज आलोचक खडे हुये.
आकाश मुक्त विचारों का
        मठाधीशों ने पंजर बना दिया...
अनिल अयान श्रीवास्तव,सतना.
९४०६७८१०७०
       
       


No comments:

Post a Comment