खो ना जाऊँ इन राहों में
यह डर मन मे डेरा डाला..
आज मेरी कुटिया मे देखो गहराता
जाता अंधियारा..
शीशमहल में गूँज ठहाकों की
अब शातिर हो जायेगी
घातक चक्रव्यूह समेटे चिडिया
ये पर फिर फैलायेगी
जीवन में शाम हो रही नभ ला
अब पावन उजियारा..
मेहनत करके पेट पालता जोड
रहा सपनो की बस्ती
डूब ना जाये इस सागर में
संघर्षो की प्यारी कस्ती
मै हूँ अब संताप समेटे और
दुश्मन है यह जग सारा..
भ्रष्ट लुटेरे महलों के आज
अस्मिता घर की लूट रहें है
अपराधी भी सारे जेलों से
सम्मानित होकर छूट रहे है
अजब बंधन में बंधा हुआ है
गरीबों का यह मन बेचारा....
कब तक सहता जाऊँ मै इन खतरनाक
अत्याचारों को
ये क्यों भूल गया है मेरे
स्वाभिमान और उपकारो को
वख्त आ गया है रचने को एक
नया समाज दोबारा...