Saturday, November 9, 2013

रिश्तों में विश्वास

जब भी कम होता यहाँ रिश्तों में विश्वास
पावन प्रेम बदल लेता है सपनों का आकाश
जब मुस्कानों की बगिया देती नयी सुगंध
दिलों में बन जाते है नित नवीन अनुबंध
रिस्ता क्या है कुछ नहीं एक दूजे का विश्वास
यह बने तो रास है यदि नहीं तो मन का फाँस
खामोशी अखरी तभी जब हो जवाब की आस
खामोशी संकट बने यदि बढे ये दिन और मास


चुनावी दोहे

चुनावी दोहे
बदले बदले रंग है और बदला बदला भाव
देखो किसका जीतेगा लगा हुआ हर दाँव.
वोट पार्टी है जाति गत सब वोटों का खेल
कहीं वादों की है कतार कहीं नोटों की रेल.
स्वेत लबादों मे लदी व्यक्तित्वों की पतलून
नेता बन गये है जिनके भोजन नहीं दो जून.
हर पल ही फैला यहाँ राजनीति का रोग
बिके करोडो रुपयों में दो कौडी के लोग.
जब जनता ने किया मजबूरी में विश्वास
चिता जैसे जला दिये विश्वासों की लाश.
अनिल अयान श्रीवास्तव,सतना
९४०६७८१०७०





Saturday, November 2, 2013

2 नवगीत



विचारों की तुलसी को
        घेर रही नागफनी.
आजकल घरों में फैली
        कलुषित आगजनी.
पाश्चात सभ्यता बोनसाई
        बन बैठी बेड रूम.
डिस्को डांस की अमरबेल
        मचा रही खूब धूम.
राक्षस आज बेटियों के
        सिर्फ वक्ष रहा चूम.
इंशानियत की बगिया
        खून के कतरों से सनी.
हमलों ने धरती को
        एक द्रौपदी बना दिया.
नेकी की फितरत ने
        आज बदी बना दिया.
एक पल की असफलतायें
        कैसे सदी बना दिया.
गरीबी की डायन से
        इंशानों की कब बनी.

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नवगीत
समझौतों की फसलों ने
        मनभूमि को बंजर बना दिया.
खुशियों की चिरैया
        मेरे हॄदय का वन भूल गयी.
हिन्दी जैसी बडी बहन
        आज उर्दू बहन भूल गयी.
सिकस्त फिर ऐसी मिली
        कलम को अपने जीवन में.
मन भावों की सिलवटें
        कथ्य     और कहन भूल गयी.
आदरणीय भावों मे लिपटे
        साहित्य को खंजर बना दिया.
साहित्य के पकवान भी
        देखो कैसे फीके पडे हुये.
थोडी सी साधना करके
        है ये सब पंडे बडे हुये.
जलमग्न द्वीप में देखो
        मोतियों की सीप में देखो.
धोती अपंग व्यथा की पहने
        आज आलोचक खडे हुये.
आकाश मुक्त विचारों का
        मठाधीशों ने पंजर बना दिया...
अनिल अयान श्रीवास्तव,सतना.
९४०६७८१०७०